नई शिक्षा नीति: हिंदी के बढ़ते कदम?
नई शिक्षा नीति के तहत देश ने पेशेवर शिक्षा भी हिंदी माध्यम से देने की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। अब तक चिकित्सा शास्त्र की पढ़ाई सिर्फ अंग्रेजी में ही होती थी और उसकी किताबें अंग्रेजी में ही उपलब्ध हुआ करती थीं, लेकिन अब चिकित्सा के तीन विषयों की तीन किताबों का हिंदी में आना सुखद और ऐतिहासिक प्रगति है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत एमबीबीएस छात्रों के लिए हिंदी पाठ्य-पुस्तकों का अनावरण किया है।
अपनी तरह के इस पहले कदम के तहत, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के हिस्से के रूप में तीन विषयों, जैव रसायन, शरीर रचना विज्ञान और चिकित्सा शरीर क्रिया विज्ञान की हिंदी पाठ्य-पुस्तकों का विमोचन किया गया है।
लगे हाथ, उन्होंने यह भी घोषणा की है कि इंजीनियरिंग, पॉलिटेक्निक और कानून की शिक्षा भी जल्द ही हिंदी में दी जाएगी। जाहिर है, हिंदी में ऐसी पहल को किसी हिंदीभाषी क्षेत्र के राज्य को ही अंजाम देना था और इसमें मध्य प्रदेश ने बाजी मार ली है।
पेशेवर या व्यावसायिक शिक्षा मातृभाषा या हिंदी में देने की चर्चा पुरानी है। संविधान निर्माताओं ने यही सोचा था कि आजादी मिलने के बाद के दो दशक में हिंदी समृद्ध हो जाएगी और अंग्रेजी अनिवार्य नहीं रह जाएगी। लेकिन यह सच है, हमारी सरकारों ने भाषा संबंधी बाधाओं से जूझने का जोखिम नहीं उठाया और अंग्रेजी स्वाभाविक ही सशक्त होती चली गई।
हिंदी क्षेत्र में डॉक्टरी भले ही मातृभाषा में होती है, लेकिन पढ़ाई तो अंग्रेजी में ही होती आई है। जब अस्पतालों में डॉक्टर-मरीज संवाद हिंदी में होता है, तो डॉक्टरों का आपसी परामर्श या चिकित्सा कार्य अंग्रेजी में क्यों हो? इलाज भी अगर हिंदी में होगा, तो शायद ज्यादातर मरीजों को समझने में सुविधा होगी।
अभी तो अनेक डॉक्टरों के हाथ से लिखी पर्ची को पढ़ना-समझना भी आसान नहीं है। हालांकि, हिंदी में पढ़ाई से एक खतरा यह है कि विदेश में नौकरी नहीं मिलेगी। शायद सरकार नीति के तहत ही ऐसा चाहती है कि देश के योग्य पेशेवर देश की सेवा में ही अपनी प्रतिभा का उपयोग करें। वैसे अगर भाषा को माध्यम बनाकर ब्रेन ड्रेन को रोकने का सपना देखा जा रहा है, तो इसमें बहुत सफलता नहीं मिलेगी। ब्रेन ड्रेन रोकने के दूसरे बेहतर तरीके हो सकते हैं। देश में अगर कार्य संस्कृति व वेतन-भत्ते को सुधार लिया जाए, तो बहुत सारे युवा या डॉक्टर, इंजीनियर ऐसे भी होंगे, जो विदेश से लौट आएंगे।
खैर, पेशेवर शिक्षा को हिंदी भाषा में प्रदान करने के मामले में हम पिछड़ गए हैं, लेकिन इसके लिए अभी कतई दुखी होने या अफसोस करने की जरूरत नहीं है। भारत अनेक भाषाओं का देश है और यहां हिंदी को किसी भी भाषा पर थोपा नहीं जा सकता, यह भारत की उदारता के विरुद्ध होगा। जो देश छोटे थे या जिन देशों ने तानाशाही की, वहां स्थानीय भाषा में पूरी शिक्षा संभव हो गई। वास्तव में, पेशेवर शिक्षा में पूरा जोर गुणवत्ता पर होना चाहिए।
अगर हम अपने हर शिक्षण संस्थान में गुणवत्तापूर्ण डॉक्टर, इंजीनियर, वकील पैदा करने लगेंगे, तब जरूरी बदलाव लाने में हम सफल होंगे। गुणवत्ता को ध्यान में रखते हुए चलना होगा। फिलहाल, यह खुशी की बात है कि 10 हिंदीभाषी और गैर-हिंदीभाषी राज्यों ने इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों की पुस्तकों का क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद शुरू कर दिया है। कुल मिलाकर, आने वाले समय में भारत में दस से ज्यादा भाषाओं में पेशेवर पढ़ाई की आजादी होगी और होनी भी चाहिए।